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स्वामी नीलकंठ आश्रम को हड़पने रसूखदारों का षड्यंत्र



मैहर तहसील के संरक्षण में ट्रस्ट की संपत्ति पर पलिता


विशेष रिपोर्ट। सतना जिले के मैहर धाम में एक सरकारी संपत्ति को रसूखदारों के नाम कर दिया गया। तहसील की मिलीभगत के कारण करोड़ों रुपए की संपत्ति को व्यक्तिगत नामे कर दिया गया है। स्वामी नीलकंठ आश्रम सहित और भी सरकारी संपत्ति ट्रस्ट के नाम देश की आजादी के बाद हो गई। मैहर तहसील का इस्तेमाल करते हुए रसूखदारों ने आश्रम की संपत्ति को अपने नाम दर्ज करा लिया है। सूत्रों की मानें तो राजस्व विभाग की पूरी टीम को साध कर रसूखदारों ने संपति पर अपना नाम दर्ज करा लिया है। जानकारी होने के बाद स्वामी नीलकंठ आश्रम का मसला न्यायालय में पहुंच चुका है। जिला प्रशासन ट्रस्ट की संपत्ति को लेकर कभी संजीदा नजर नहीं आया है। यही वजह है कि सतना जिले में बहुत सी ट्रस्ट की संपत्ति पर रसूखदारों ने अपना कब्जा जमा लिया है। मजेदार बात यह है कि संपति के इस सुनियोजित खेल को राजस्व विभाग के परस्पर सहयोग से अंजाम दिया गया है। हर तहसील के राजस्व विभाग में शामिल घूंसघोर अधिकारियों और कर्मचारियों के सहयोग से स्वामी नीलकंठ आश्रम जैसी करोड़ों की संपत्ति को रसूखदारों ने अपने नाम करवा लिया है। बम नारायण दास जैसे रसूखदारों और भूमाफियाओं ने सरकारी संपत्ति को हड़पने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र को अंजाम दिया है। जब जिला प्रशासन ही अपने हक वाली ट्रस्ट की संपत्ति को लेकर लापरवाह हो जाएगा तो इसी तरह चंद रसूखदारों की बल्ले-बल्ले जरुर रहेगी। शासन स्तर से यह तय हुआ है कि किसी भी स्थिति में ट्रस्ट की जमीन व्यक्तिगत नामे नहीं हो सकती है। इसके बाद भी स्वामी नीलकंठ आश्रम की ट्रस्ट वाली संपति को राजनैतिक दबाव से व्यक्ति विशेष के नाम करवा दिया गया है। करोड़ों की संपत्ति को हड़पने के लिए षड्यंत्र करने वाले रसूखदारों ने अपने राजनैतिक पावर का दुरुपयोग कर स्वामी नीलकंठ आश्रम को अपने व्यक्तिगत नामे करवा लिया। 
*ओईला तालाब पर नासूर बन गया अतिक्रमण*
स्वामी नीलकंठ आश्रम के पास ही एक सालों पुराना सरकारी तालाब बना हुआ है। इस सरकारी तालाब का वजूद समाप्त करने के लिए लगातार अतिक्रमण करवाया जा रहा है। ओईला नाम का यह तालाब आसपास के लोगों की प्यास बुझाने का काम करता आ रहा है। यहां पर भी रसूखदारों ने अपना दखल करना मुनासिब समझा और लगातार अतिक्रमण करने वालों की संख्या बढ़ाने का काम किया गया। ओईला तालाब एक मजबूत और पुराना जलस्त्रोत है, इसके बाद भी राजस्व विभाग मैहर की लीपापोती के कारण इस तालाब को समाप्त करने की योजना पर काम किया जा रहा है। स्वामी नीलकंठ आश्रम और ओईला तालाब दोनों ही संपति जिला प्रशासन के हवाले जरुर है पर उस पर रसूखदारों ने अपना कब्जा जमा लिया है। 
*जिला प्रशासन बन गया धृतराष्ट्र, कैसे बचेगी संपत्ति*
ट्रस्ट के अधीन जो भी पुराने तालाब, मंदिर, मस्जिद, आश्रम हैं उनके मालिक जिला कलेक्टर अजय कटेसरिया हैं। सूत्रों की मानें तो कलेक्टर की कुर्सी पर बैठने वाले किसी भी अधिकारी ने अपनी पदस्थापना के दौरान ट्रस्ट की संपत्ति की खोज खबर लेना जरूरी नहीं समझा। यही वजह है कि तहसीलों के राजस्व अमले ने व्यक्तिगत लाभ पाने के लिए दस्तावेजों से सुनियोजित खिलवाड़ किया। जब तक हमारा जिला प्रशासन धृतराष्ट्र की भूमिका निभाने तक सीमित रहेगा तब तक स्वामी नीलकंठ आश्रम और ओईला जैसे तालाब को रसूखदारों से बचाना कभी संभव नहीं होगा। शासन यह मानता है कि किसी भी जिले में ट्रस्ट की संपत्ति को सुरक्षित रखने का काम जिम्मेदारी के साथ जिला प्रशासन कर रहा होगा पर जमीनी हकीकत यह है कि कलेक्टर की कुर्सी पर बैठने के बाद अधिकांश अधिकारी ट्रस्ट जैसे संवेदनशील मामलों की फाइल तक देखना जरूरी नहीं समझते। कलेक्टर के अलावा और कोई ऐसा नहीं है जो ट्रस्ट की संपत्ति को बचाने में सफल हो सकता है।


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