मशीनों के बाद भी काउंटर पर उमड़ती है भीड़ भाड़
सतना। मुसाफिरों को यात्रा टिकट देने के लिए भारतीय रेलवे ने स्टेशन में जो व्यवस्था बना रखी है उसकी आड़ लेकर ऊपरी कमाई को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया जा रहा है। स्थानीय रेलवे स्टेशन परिसर में साधारण यात्रा टिकट उपलब्ध कराने के लिए करीब आठ टिकट काउंटर संचालित कर रखे हैं। लेकिन चार से पांच ही बराबर संचालित होते नजर आते हैं। इन टिकट काउंटरों पर बैठने वाले क्लर्क खुल्ला के नाम पर सुनियोजित तरीके से ऊपरी कमाई को जिम्मेदारी के साथ अंजाम देते हैं। इस व्यवस्था को फालो करने से बुकिंग क्लर्क रोज हजार बारह सौ रुपए की ऊपरी कमाई करने में सफल रहते हैं। रेलवे अब रेलवे स्टेशन पर टिकट वेडिंग मशीन के सहारे साधारण यात्रा टिकट लोगों को उपलब्ध कराता है। इस सुविधा के नाम पर सामने वाले को हर टिकट में एक रुपए का कमीशन हासिल होता है। सतना रेलवे स्टेशन पर तीन से चार टिकट वेडिंग मशीन होने के बाद भी काउंटरों के बाहर यात्रा टिकट लेने के लिए लोगों की कतार बराबर देखने को मिलती है। ठीक इसी समय पर टिकट काउंटर के अंदर बैठने वाला रेलकर्मी खुल्ले का संकट बताकर ऊपरी कमाई करने में सफल हो जाते हैं। सूत्रों ने बताया कि हर शिफ्ट में बुकिंग क्लर्क यात्रियों से अवैध वसूली करते हुए ऊपरी कमाई को आसानी से अंजाम देने में सफल हो जाते हैं। हजार से लेकर पंद्रह सौ रुपए की ऊपरी कमाई बुकिंग क्लर्क डंके की चोट पर कर रहे हैं। रेलगाड़ी छूटने के समय रेलवे स्टेशन पहुंचने वाले लोगों के पास समय सीमित होता है इसलिए जब कतार में लगे होने के दौरान बुकिंग क्लर्क खुल्ले की समस्या बताता है तो यात्री चिक चिक करने के बजाय काउंटर पर अपना पैसा छोड़कर रेलगाड़ी पकड़ने के लिए दौड़ने लगता है। यही वह पैसा है जो सीधे बुकिंग क्लर्क के जेब में जाता है। इसका कोई हिसाब किताब नहीं होता है। इसलिए बुकिंग क्लर्क को भी ऊपरी कमाई करने में किसी तरह का टेंशन नहीं होता है।
आरक्षण केंद्र में तो होता है सुनियोजित खेल
सतना रेलवे स्टेशन में जहां साधारण टिकट लोगों को देने के नाम पर काउंटर के अंदर बैठने वाला बुकिंग क्लर्क हजार बारह सौ रुपए की ऊपरी कमाई करने में सफल हो जाता है तो वहीं आरक्षण केंद्र की व्यवस्था तो और सुनियोजित तरीके से काम करती है। किसी जमाने में सतना रेलवे स्टेशन परिसर के बाहरी हिस्से में संचालित आरक्षण केंद्र में सुबह से टिकट दलालों का नेटवर्क नजर आने लगता था। समय के साथ सतना रेलवे स्टेशन में आरक्षण व्यवस्था पर दलालों की बढ़ती घुसपैठ के कारण जबलपुर रेल मंडल और आरपीएफ ने कसावट लाने का काम किया था। लेकिन इसके बावजूद शत प्रतिशत आरक्षण के नाम पर होने वाला दलाली का खेल बराबर जारी है। हाईटेक सिस्टम अपनाते हुए अब सारी डिलिंग मोबाइल पर टिकट एजेंट अपने चहेते बुकिंग क्लर्क से कर लेते हैं, जानकारी एकत्र करने के बाद जब संबंधित रेलकर्मी अपनी ड्यूटी पर आरक्षण काउंटर पर बैठता है तो सबसे पहले पूरी प्राथमिकता के साथ एजेंट वाली टिकट बनाने का काम करता है। प्रत्येक कन्फर्म टिकट के एवज में डेढ़ से ढाई सौ रुपए का कमीशन एजेंट बुकिंग क्लर्क को सौंप देता है जिससे वह बराबर उनकी मदद करता रहे। अब खुले तौर पर टिकट एजेंट आरक्षण केंद्र नहीं जाते हैं, उनके किराए में रखे गए लड़के ही तत्काल सहित अन्य कन्फर्म यात्रा टिकट निकालने का काम करते हैं। यही वह व्यवस्था है जिसके कारण लाइन में खड़े लोगों को हमेशा वेटिंग वाला टिकट ही नसीब हो पाता है।
जबलपुर रेल मंडल भी करता है सहयोग
रेलवे टिकट आरक्षण और साधारण टिकट वितरण व्यवस्था के नाम पर लोगों से होने वाली अवैध वसूली के खेल को संरक्षण देने का काम जिम्मेदारी के साथ जबलपुर रेल मंडल कार्यालय करता है। मुख्यालय में बैठने वाले वाणिज्य विभाग सहित अन्य विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को यह अच्छी तरह पता है कि किस तरह खुल्ले के नाम पर बुकिंग क्लर्क रेलवे टिकट काउंटर पर बैठ कर ऊपरी कमाई करते हैं। आरक्षण व्यवस्था पर होने वाली टिकट दलाली से भी आला अधिकारी बराबर परिचित होते हैं, इसके बाद भी इन समस्याओं को समाप्त करने का काम जिम्मेदारी के साथ नहीं किया जाता है। जबलपुर रेल मंडल में सिर्फ अफसरशाही ही सीमित रह गई है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि टिकट देने के नाम पर लोगों से अवैध वसूली क्यों की जाती है। सूत्रों की मानें तो लोकल रेलवे स्टेशन में तैनात एस एमसी और सीआर एस जैसे अधिकारी जबलपुर रेल मंडल के डीसीएम, सीनियर डीसीएम जैसे दिग्गज अधिकारियों को बराबर मैनेज करके चलते हैं।
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